खबरीलाल टाइम्स डेस्क : सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (एनआईएससीपीआर), उन्नत भारत अभियान (यूबीए) – राष्ट्रीय समन्वय संस्थान, आईआईटी दिल्ली, विज्ञान भारती (विभा) और जवाहरलाल नेहरू राजकीय महाविद्यालय (पीआई, यूबीए) ने संयुक्त रूप से पोर्ट ब्लेयर में सीएसआईआर प्रौद्योगिकियों के प्रसार के लिए तीन दिवसीय हितधारक बैठक (11 से 13 मार्च) का आयोजन किया।

अपनी अनूठी भौगोलिक स्थिति और पारिस्थितिकीय समृद्धि के लिए प्रसिद्ध अंडमान और निकोबार द्वीप समूह कृषि, मत्स्य पालन, जल संसाधन, स्वास्थ्य सेवा और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में अलग-अलग चुनौतियों का सामना करता है। सतत विकास की अपनी क्षमता के बावजूद, इस क्षेत्र के विकास में सीमित बुनियादी ढांचा, प्राकृतिक संसाधनों का कम उपयोग और आधुनिक तकनीकों तक पहुंच की कमी बाधा डालती है। हालांकि, अभिनव समाधानों से इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान किया जा सकता है।

भारत में अग्रणी अनुसंधान एवं विकास संगठन वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने कृषि, खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी, मधुमक्खी पालन और मधुमक्खी छत्ता प्रौद्योगिकी, पुष्प उत्पादन और एरोमा मिशन, जल शोधन प्रौद्योगिकी, जल विलवणीकरण प्रौद्योगिकी, मछली प्रसंस्करण आदि जैसे प्रमुख क्षेत्रों में प्रौद्योगिकियों की एक विस्तृत श्रृंखला विकसित की है। इन प्रौद्योगिकियों का प्रसार आजीविका के अवसर पैदा करके और जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार करके क्षेत्र के सतत विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

इस क्षेत्र की विशिष्ट चुनौतियों के समाधान के लिए सीएसआईआर प्रौद्योगिकियों पर चर्चा और उनका प्रसार करने के लिए तीन दिवसीय हितधारक बैठक का आयोजन किया गया था। यह बैठक 11 से 13 मार्च, 2025 को पोर्ट ब्लेयर के जवाहरलाल नेहरू राजकीय महाविद्यालय (जेएनआरएम) में हुई, जिसे सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर, उन्नत भारत अभियान (यूबीए) – राष्ट्रीय समन्वय संस्थान, आईआईटी दिल्ली, विज्ञान भारती (विभा) और जेएनआरएम ने संयुक्त रूप से आयोजित किया। इस आयोजन का उद्देश्य क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक और पारिस्थितिक संदर्भ के अनुरूप सीएसआईआर प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना, हितधारकों के बीच संवाद शुरू कराना, प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन के लिए सहयोग का निर्माण करना तथा साझेदारी को प्रोत्साहित करना और प्रौद्योगिकी प्रदर्शनों तथा प्रस्तुतियों के माध्यम से क्षमता निर्माण प्रदान करना था। इस आयोजन के मुख्य फोकस क्षेत्रों में सीएसआईआर के समाधानों और क्षेत्र में उनके संभावित अनुप्रयोगों की खोज करना शामिल था। इन अनुप्रयोगों में पुष्पकृषि मिशन, एरोमा मिशन, खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियां, सौर ड्रायर प्रौद्योगिकी, मधुमक्खी पालन और छत्ते की प्रौद्योगिकियां, जल विलवणीकरण प्रौद्योगिकियां, आदि शामिल हैं।

यह बैठक जनवरी 2024 में आयोजित एक कार्यक्रम के बाद आयोजित की गई। इसका उद्देश्य क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए सीएसआईआर प्रौद्योगिकियों के संभावित अनुप्रयोग का पता लगाना है। इस कार्यक्रम में विशेषज्ञों के एक प्रतिष्ठित पैनल ने भाग लिया।

इस बैठक का उद्घाटन सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की निदेशक प्रोफेसर रंजना अग्रवाल; सीएसआईआर-सीएफटीआरआई की निदेशक डॉ. श्रीदेवी अन्नपूर्णा सिंह; सीएसआईआर-एनबीआरआई के निदेशक डॉ. अजीत कुमार शासनी की उपस्थिति में किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि सुश्री पल्लवी सरकार, आईएएस, सचिव (कृषि/पशुपालन समन्वयक सीएस कार्यालय) ईडी (एएनआईआईडीआईसीओ) और विशिष्ट अतिथि डॉ. एकनाथ बी. चाकुरकर, निदेशक आईसीएआर-सीआईएआरआई उपस्थित थे। इस बैठक में डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, परियोजना निदेशक यूबीए; श्री श्रीप्रसाद कुट्टन, आयोजन सचिव विभा और जेएनआरएम के प्रभारी प्राचार्य भी उपस्थित थे। इस बैठक में सीएसआईआर-सीएफटीआरआई, सीएसआईआर-आईएचबीटी, सीएसआईआर-सीमैप, सीएसआईआर-आईआईसीटी, सीएसआईआर-सीएसएमसीआरआई, सीएसआईआर-एनआईईएसटी, सीएसआईआर-एनबीआरआई, सीएसआईआर-टीएमडी और एनआईओटी के वैज्ञानिक, नाबार्ड के प्रतिनिधि और विभिन्न स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

प्रो. रंजना अग्रवाल ने इस कार्यक्रम के आयोजन के पीछे की अवधारणा पर प्रकाश डाला और बताया कि कैसे सीएसआईआर प्रौद्योगिकी से अंडमान और निकोबार क्षेत्र की क्षमता का दोहन किया जा सकता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस बैठक के पीछे के प्रयास निश्चित रूप से क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समृद्ध करने वाली प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन में तब्दील होंगे। उन्होंने इस बैठक में महिलाओं की प्रमुख भागीदारी पर ध्यान दिया और टिप्पणी की। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में क्षमता निर्माण की दिशा में ग्रामीण क्षेत्रों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी समाधान प्रदान करने में सीएसआईआर, यूबीए और विभा की भूमिकाओं के बारे में चर्चा की। उन्होंने सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के साथ-साथ इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए सीएसआईआर-सीएफटीआरआई, सीएसआईआर-आईएचबीटी, सीएसआईआर-सीआईएमएपी, सीएसआईआर-आईआईसीटी, सीएसआईआर-सीएसएमसीआरआई, सीएसआईआर-एनआईईएसटी, सीएसआईआर-एनबीआरआई और एनआईओटी को धन्यवाद दिया।

जेएनआरएम के प्रभारी प्राचार्य डॉ. केसी जोशी ने प्रतिनिधियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया और ग्रामीण विकास में प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के महत्व पर प्रकाश डाला, जो विशेष रूप से अंडमान और निकोबार क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि इससे इस क्षेत्र की क्षमता का दोहन होगा।

सुश्री पल्लवी सरकार, आईएएस ने इस संवादात्मक मंच के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह आयोजन अंडमान और निकोबार क्षेत्र की भूमि में वैज्ञानिक रूप से मान्य प्रौद्योगिकियों को लाने वाला एक ऐतिहासिक आयोजन है। उन्होंने सभी हितधारकों से अनुरोध करते हुए कहा कि उन्हें इस क्षेत्र की प्राकृतिक-संसाधन क्षमता को मूल्यवर्धित उत्पादों में बदलने के लिए वैज्ञानिकों के साथ सभी प्रौद्योगिकी प्रसार सत्रों में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए, ताकि उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ावा दिया जा सकता है। उन्होंने विस्तार से यह भी बताया कि इस बैठक के दौरान अंडमान और निकोबार क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों पर ठीक से काम किया जाना चाहिए, उनका मानचित्रण किया जाना चाहिए और उन्हें सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, उन्होंने सुझाव दिया कि वैज्ञानिक समुदाय को प्राकृतिक संसाधनों के मानचित्रण पर भी काम करना चाहिए, जिसके लिए मूल्यवर्धित उत्पादों के लिए पारंपरिक ज्ञान के साथ तालमेल में संभावित प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा सकता है, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ावा दिया जा सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि ऐसी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिया जा सकता है जिससे वन-आधारित उत्पाद, पशु आधारित उत्पाद, समुद्र आधारित उत्पाद, नारियल से मूल्यवर्धित उत्पाद, शहद मधुमक्खी पालन और शहद से मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने में मदद मिल सके। उन्होंन कहा कि ऐसे उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया जा सकता है।

इस बैठक में आईसीएआर-सीआईएआरआई, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डॉ. एकनाथ बी. चाकुरकर ने मुख्य अतिथि के रूप में भाषण दिया और क्षेत्र के सतत विकास के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थानों और स्थानीय अधिकारियों के बीच सहयोग के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में आमंत्रित करने के लिए आयोजकों को धन्यवाद दिया और आईसीएआर-सीआईएआरआई के यूबीए और विभा (वीआईबीएचए) के साथ पहले से मौजूद संबंधों पर जोर दिया। उन्होंने द्वितीयक कृषि के बारे में बताया, जिसमें लोग सीधे तौर पर कृषि से जुड़े नहीं होते हैं, जैसे अमूल मक्खन, सिंदूर का पौधा, एरिका नेट प्लेट बनाने का व्यवसाय आदि। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह कार्यक्रम उल्लेखनीय है क्योंकि इसमें कई वैज्ञानिकों ने हितधारकों के साथ सीधे चर्चा की। इसलिए उन्होंने सभी हितधारकों से इस अवसर का अधिकतम उपयोग करने का अनुरोध किया।

सीएसआईआर-सीएफटीआरआई की निदेशक डॉ. श्रीदेवी अन्नपूर्णा सिंह ने कहा कि उनका मानना ​​है कि इस क्षेत्र में मूल्यवर्धित खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सीएसआईआर-सीएफटीआरआई की तकनीकें बहुत महत्वपूर्ण होंगी। उन्होंने सीएसआईआर-सीएफटीआरआई की विकसित महत्वपूर्ण तकनीकों जैसे अमूल मिल्क पाउडर, मसाला तेल और ओलियोरेसिन, इंस्टेंट मिक्स आदि के बारे में संक्षेप में बताया। उन्होंने ग्रामीण विकास के लिए स्वदेशी तकनीकों को अपनाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने सीएसआईआर-सीएफटीआरआई की नारियल आधारित तकनीकों का उदाहरण दिया, जिसके कार्यान्वयन पर इस क्षेत्र में नारियल की आसान उपलब्धता को देखते हुए इस बैठक में चर्चा की गई। उन्होंने ग्रामीण क्षमता निर्माण के लिए सीएसआईआर-सीएफटीआरआई की ओर से प्रदान किए गए कई प्रशिक्षण कार्यक्रमों, इनक्यूबेशन केंद्रों और सहायता का उल्लेख किया।

डॉ. कंदिमुथु ने गणमान्य हस्तियों का हार्दिक स्वागत किया तथा पद्मश्री सुश्री पंचिमल नारियाल अम्मा और श्रीमती मीनामल का परिचय कराया, जो अंडमान एवं निकोबार क्षेत्र में जमीनी स्तर पर काम कर रही हैं।

सीएसआईआर-एनबीआरआई लखनऊ के निदेशक डॉ. अजीत कुमार शसनी ने बहुत ही सरल शब्दों में प्रौद्योगिकी के महत्व को बताया और इस कार्यक्रम के महत्व को दर्शकों के सामने मजबूती से रखा। उन्होंने बताया कि सीएसआईआर संस्थान ग्रामीण प्रौद्योगिकियों के प्रयोगशाला से भूमि तक बदलाव की दिशा में कई और ईमानदार प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने सीएसआईआर-एनबीआरआई द्वारा विकसित जैविक खाद और बैक्टीरिया आधारित समाधानों से हुए बदलावों का उल्लेख किया, जो यूरिया और कीटनाशकों का विकल्प हैं और जिनका अंडमान और निकोबार क्षेत्र में संभावित अनुप्रयोग हैं।

यूबीए के परियोजना निदेशक डॉ. पीके सिंह ने पूरे भारत में यूबीए की संचालित गतिविधियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने यूबीए द्वारा सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर के सहयोग से आयोजित किए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का उल्लेख किया। उन्होंने ग्रामीण विकास के इच्छुक छात्रों से यूबीए परियोजनाओं की खोज करने का अनुरोध किया जो वर्ष में दो बार आती हैं। उन्होंने ग्रामीण विकास में संकायों और छात्रों की भागीदारी बढ़ाने के लिए यूबीए की अन्य गतिविधियों के बारे में भी बताया।

श्री श्रीप्रसाद एमके ने इस बैठक को संबोधित करते हुए ग्रामीण आजीविका के उत्थान में विभा की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि विभा ने पूरे भारत में विभिन्न राज्यों में 38 अध्याय शुरू किए हैं। उन्होंने अपने बारे में यह भी बताया कि वह विभा में अंडमान और निकोबार के प्रतिनिधि हैं।

सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर, नई दिल्ली के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. योगेश सुमन ने ‘यूबीए और विभा (वीआईबीएचए) नेटवर्क का उपयोग करके सीएसआईआर प्रौद्योगिकियों के माध्यम से आजीविका के अवसर पैदा करना’ परियोजना में विज्ञान और प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के माध्यम से ग्रामीण विकास के लिए की गई गतिविधियों को प्रस्तुत किया। उन्होंने सभी विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और प्रतिभागियों को धन्यवाद भी दिया।

अंडमान की ‘नारियल अम्मा’ पद्मश्री पुरस्कार विजेता सुश्री कमाची चेल्लम्मल ने भी इस कार्यक्रम में भाग लिया। वैज्ञानिकों ने अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों के मानचित्रण के लिए उनके कृषि फार्मों का भी दौरा किया।

तकनीकी सत्र 1 खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों सीएसआईआर-सीएफटीआरआई का उपयोग करके मूल्य वर्धित उत्पाद बनाने से संबंधित था, जिसे डॉ श्रीदेवी अन्नपूर्णा सिंह, डॉ आशितोष इनामदार और डॉ प्रताप सिंह नेगी ने प्रस्तुत किया। सत्र में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिए उपयुक्त सीएसआईआर-सीएफटीआरआई प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ प्रसार और अनुकूलन रणनीतियों को प्रस्तुत किया गया।

अंडमान क्षेत्र में पुष्पकृषि और एरोमा मिशन से संबंधित सीएसआईआर प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग की खोज से संबंधित तकनीकी सत्र 2 पर सीएसआईआर-सीआईएमएपी के डॉ. रमेश चंद्र श्रीवास्तव, डॉ. राजेश कुमार वर्मा, सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर के डॉ. सुखजिंदर सिंह और सीएसआईआर-एनबीआरआई, लखनऊ के डॉ. मनीष भोयर ने प्रकाश डाला।

दूसरे दिन के तकनीकी सत्र 3 की शुरुआत अंडमान क्षेत्र में मधुमक्खी पालन और मधुमक्खी छत्ते की तकनीकों से हुई। इसमें सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर की विकसित ‘सुधारित मधुमक्खी छत्ते की तकनीक’ प्रस्तुत की गई जिसे डॉ. सुखजिंदर सिंह, सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर ने प्रस्तुत किया। अंडमान क्षेत्र में जल विलवणीकरण तकनीक के अनुप्रयोग पर सीएसआईआर-आईआईसीटी हैदराबाद के डॉ. एस. श्रीधर और राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी), चेन्नई के डॉ. जी. वेंकटेशन ने प्रस्तुति दी। डॉ. भूपेंद्र मरकम सीएसआईआर-सीएसएमसीआरआई, भावनगर ने कृषि-खाद्य उत्पादों को स्वच्छ तरीके से सुखाने के लिए विकेन्द्रीकृत सौर तापीय ड्रायर के अनुप्रयोग पर प्रस्तुति दी तथा अंडमान और निकोबार क्षेत्र के लिए कृषि-खाद्य उत्पादों और मछली सुखाने के लिए इस तकनीक की उपयुक्तता पर प्रकाश डाला। अंडमान क्षेत्र में नाबार्ड के सहायक प्रबंधक श्री प्रताप सिंह ने अंडमान क्षेत्र में उपलब्ध वित्तपोषण योजनाओं का अवलोकन प्रस्तुत किया। क्षेत्र के मुद्दों और प्रौद्योगिकी मानचित्रण को समझने के लिए क्षेत्र भ्रमण का भी आयोजन किया गया।

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