खबरीलाल टाइम्स डेस्क :
कोसी नदी के तट पर, जहां दशकों से लोग बाढ़, अलगाव और लंबे चक्करों से जूझ रहे हैं, एक नया सपना साकार हो रहा है। 13.3 किलोमीटर लंबा भेजा-बकौर कोसी पुल अब निर्माण के अंतिम चरण में है। कोसी नदी पर बना यह पुल एक बार चालू होने के बाद यात्रा की दूरी को 44 किलोमीटर कम कर देगा। यह बाढ़ प्रभावित, सुविधाओं से वंचित मधुबनी और सुपौल क्षेत्रों को सीधे एनएच-27 और पटना से जोड़ देगा। इससे नेपाल और पूर्वोत्तर के लिए भी सुगम मार्ग खुलेंगे। इससे सीमा पार व्यापार, क्षेत्रीय वाणिज्य और बहुप्रतीक्षित निवेश को बढ़ावा मिलेगा। यह विकास बिहार में भारतमाला परियोजना के प्रथम चरण की बस रैपिड ट्रांजिट (बीआरटी) योजना के अंतर्गत ईपीसी मोड पर हो रहा है। 1101.99 करोड़ रूपये के निवेश से निर्मित यह पुल क्षेत्र में कनेक्टिविटी को बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। परियोजना के वित्त वर्ष 2026-2027 में पूरा होने का लक्ष्य है।

तीर्थयात्रियों को भगवती उच्चैत, बिदेश्वर धाम, उग्रतारा मंदिर और सिंहेश्वर स्थान जैसे पवित्र स्थलों तक आसानी से पहुंच मिलेगी। किसानों को बाढ़ के दौरान फंसे रहने का डर नहीं रहेगा। छात्र बिना किसी डर के स्कूल पहुंच सकेंगे। व्यापारी समय पर सामान पहुंचा सकेंगे। छोटी दुकानें बढ़ेंगी; परिवहन सेवाएं बेहतर होंगी; स्थानीय युवाओं को नए रोजगार मिलेंगे।

एक समय उग्र नदी से संघर्षों के लिए मशहूर इस क्षेत्र में, यह पुल संभावनाओं को नए सिरे से परिभाषित कर रहा है। और जैसे ही कोसी पुल निर्माण के अंतिम चरण के नजदीक आ रहा है, उत्तरी बिहार के लोग एक ही भावना से एकजुट हो जाते हैं – उनकी दुनिया हमेशा के लिए बदलने वाली है।

संक्षिप्त तथ्य:

  • परियोजना की लंबाई (किलोमीटर में): 13.300 किलोमीटर
  • अनुमानित सिविल परियोजना लागत: 1101.99 करोड़ रुपये
  • पूर्ण होने की तिथि: वित्तीय वर्ष 2026-2027
यह पुल मधुबनी, सुपौल, सहरसा और आसपास के जिलों के लोगों के लिए मात्र इस्पात और कंक्रीट से कहीं अधिक है। यह एक जीवन रेखा है, आशा की एक अटूट कड़ी है, जो कोसी नदी के बाढ़ के मैदानों की चुनौतियों से प्रभावित समुदायों के लिए जीवन को सुगम बनाती है।

सहरसा के रहने वाले शिक्षक रोशन कुमार, जो मधुबनी के एक प्लस-टू स्कूल में रोज़ाना पढ़ाने जाते हैं, उनके लिए यह पुल वर्षों की थका देने वाली यात्राओं से मुक्ति का प्रतीक है। वे बताते हैं, “अभी भेजा पहुंचने के लिए मुझे बलवाहा पुल और कोसी तटबंध से होते हुए लगभग 70 किलोमीटर अतिरिक्त यात्रा करनी पड़ती है। पहले हमें दरभंगा या फुलपरास होकर जाना पड़ता था जो 150 से 200 किलोमीटर का सफर होता था। पुल चालू होने बाद सहरसा से मधुबनी की दूरी लगभग 70 किलोमीटर कम हो जाएगी। यह बदलाव जीवन बदल देने वाला है।” उनकी आवाज़ में नरमी आ जाती है जब वे आगे कहते हैं, “यह सिर्फ एक पुल नहीं है। इससे शिक्षकों, छात्रों, व्यापारियों… सभी के लिए समय, पैसा और ऊर्जा की बचत होगी।”

क्षेत्र में एक मेडिकल शॉप के मालिक पंकज के लिए, इस परियोजना का भावनात्मक महत्व और भी गहरा है। वे कहते हैं, “हमने बहुत कष्ट झेला है। मरीजों को अस्पतालों तक ले जाना एक बुरे सपने जैसा था। बाढ़ के कारण हमारा संपर्क टूट जाता था, नौकाएं बंद हो जाती थीं, और कई बार मदद देर से पहुंचने के कारण लोगों की जान चली जाती थी।” बन रही संरचना को देखकर उनकी आंखों में गर्व की चमक आ जाती है। “अब एम्बुलेंस आधे घंटे में पुल पार कर जाएगी। मरीज समय पर पहुंचेंगे। यह सम्मान की बात है। यह सुरक्षा की बात है। हमें गर्व है कि हमारे जिले में ऐसा पुल बन रहा है।”

क्षेत्र के युवाओं में भी यही उत्साह है। ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा नेहा बताती हैं कि मानसून के दौरान इलाके को कितनी परेशानी झेलनी पड़ी थी। “लोग पार करने से डरते थे। सड़कें बह जाती थीं। लेकिन अब सब कुछ बदल जाएगा। हम सुरक्षित स्कूल पहुंचेंगे। हमारा इलाका आखिरकार राज्य के बाकी हिस्सों से जुड़ पाएगा।” इस पुल का परिवर्तनकारी प्रभाव इन व्यक्तिगत अनुभवों से कहीं अधिक व्यापक है।

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