खबरीलाल टाइम्स डेस्क : इसका उद्घाटन करते हुए, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री वी. रामसुब्रमण्यन ने विभिन्न जातियों, समुदायों, कला रूपों और भाषाओं के साथ भारत के समृद्ध और विविध सांस्कृतिक लोकाचार और सदियों से इसे एकता के सूत्र में बांधे रखने वाले मूल्यों पर प्रकाश डाला

उन्होंने कहा कि हर देश की अपनी विविध सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक वास्तविकताओं के कारण मानवाधिकारों की समस्याओं के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के तहत टेलर-मेड समाधान नहीं हो सकते हैं

आईटीईसी जैसे मंच एक-दूसरे की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और मानवाधिकार संबंधी मूल्यों को साझा करने और आदान-प्रदान करने, लगातार उभरती मानवाधिकार से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के सर्वोत्तम तरीकों पर विचार करने और रास्ते निकालने का अवसर प्रदान करते हैं

वैश्विक दक्षिण के राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान  (एनएचआरआई)  के लिए मानवाधिकारों पर छह दिवसीय भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग कार्यकारी (आईटीईसी) क्षमता निर्माण कार्यक्रम आज नई दिल्ली में शुरू हुआ। इसका आयोजन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत द्वारा केंद्रीय विदेश मंत्रालय (एमईए) के साथ साझेदारी में किया जा रहा है। वैश्विक दक्षिण के 14 देशों के राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान के लगभग 47 प्रतिभागियों ने इसमें भाग लेने के बारे में समहति व्यक्त की है। मेडागास्कर, युगांडा, समोआ, तिमोर लेस्ते, डीआर कांगो, टोगो, माली, नाइजीरिया, मिस्र, तंजानिया, मॉरीशस, बुरुंडी, तुर्कमेनिस्तान और कतर इन  देशों में शामिल हैं ।

एनएचआरसी, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि भारत विभिन्न जातियों, समुदायों, कला रूपों और भाषाओं के साथ समृद्ध विविध सांस्कृतिक लोकाचार का देश है और फिर भी यह सदियों से साझा मूल्यों और परंपराओं की एकता में पनप रहा है। हालांकि, उन्होंने कहा कि विविधता के साथ विविध समस्याएं भी आती हैं, जिनके लिए विविध समाधानों की आवश्यकता होती है। हर देश की अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक परंपराएं होती हैं और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के बाद उनके मानकीकृत तरीकों को देखते हुए मानवाधिकार संबंधी मुद्दों का समाधान करते समय विविधताओं को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए, समस्याओं का समाधान हर देश के लिए अलग-अलग नहीं हो सकता।

न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यन ने कहा कि आईटीईसी जैसे मंच एक-दूसरे की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और मानवाधिकार मूल्यों को साझा करने और आदान-प्रदान करने का अवसर प्रदान करते हैं, ताकि प्रत्येक देश में अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक वास्तविकताओं के साथ उभरती मानवाधिकार चुनौतियों का सर्वोत्तम तरीके से समाधान करने के तरीकों पर विचार और खोज की जा सके।

उन्होंने वैश्विक दक्षिण के राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थान और उनके देशों के भाग लेने वाले वरिष्ठ पदाधिकारियों के प्रति आभार व्यक्त किया कि उन्होंने एनएचआरसी, भारत के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कई प्राचीन भारतीय ग्रंथों का भी नाम लिया, जो देशों या सदियों में प्रचलित मानवीय मूल्यों और लोकाचारों पर प्रकाश डालते हैं और आज भी पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक हैं।

एनएचआरसी, भारत के सदस्य न्यायमूर्ति (डॉ) बिद्युत रंजन सारंगी ने अपने भाषण में कहा कि आयोग ने अपनी व्यापक पहलों के माध्यम से भारत के मानवीय परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई पश्चिमी देशों के दृष्टिकोणों के विपरीत, जो हर चीज से ऊपर व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर देते हैं, भारत एक अधिक संतुलित मॉडल का पालन करता है जो व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों अधिकारों को महत्व देता है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मंचों में भारत की भागीदारी एक न्यायसंगत तथा समतापूर्ण वैश्विक व्यवस्था के निर्माण के लिए उसके समर्पण को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि आईटीईसी जैसी क्षमता निर्माण पहल हमारे ज्ञान के विस्तार और हमारे कौशल को निखारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस कार्यक्रम में भाग लेते हुए, आइए हम सम्मान, न्याय और समानता के सार्वभौमिक मूल्यों के प्रति दृढ़ रहकर, अपनी राष्ट्रीय वास्तविकताओं के भीतर मानवाधिकार के सिद्धांतों को प्रासंगिक बनाने की आवश्यकता को चिन्हित करें।

एनएचआरसी, भारत की सदस्य श्रीमती विजया भारती सयानी ने कहा कि अपने सामूहिक ज्ञान और संसाधनों को साझा करके, हम लगातार विकसित हो रहे वैश्विक मानवाधिकार के परिदृश्य में अपने राष्ट्रों और क्षेत्रों में मानवाधिकारों के संरक्षण और संवर्धन को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकते हैं। उन्होंने मानवाधिकारों के कुछ प्रमुख विषयगत मुद्दों पर भी प्रकाश डाला, जिन पर एनएचआरसी, भारत द्वारा ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिसमें महिलाओं के अधिकार और महिला-पुरुष आधारित समानता कायम करना, हाशिए वाले समुदायों की सुरक्षा, विकास और विस्थापन के संदर्भ में कमजोर आबादी की सुरक्षा आदि शामिल हैं।

एनएचआरसी, भारत के महासचिव श्री भरत लाल ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि भारत पारंपरिक रूप से मानवता के व्यापक हित के लिए अपने सबसे प्रिय ज्ञान और बुद्धिमत्ता को हमेशा साझा करना चाहता है। यह प्रशिक्षण उसी भावना के साथ आयोजित किया गया है, जिसमें हम एक-दूसरे से सीखने की उम्मीद और अपेक्षा करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में शासन की संघीय संरचना है, जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों के अधिकारों और कल्याण के मुद्दों का समाधान करने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अन्य आयोगों के अलावा विभिन्न राज्यों में 27 मानवाधिकार आयोग हैं। एनएचआरसी, भारत केवल एक मानवाधिकार वकालत मंच नहीं है, बल्कि देश में मानवाधिकारों को लागू करने के लिए उत्तरदायी भी है।

इस अवसर पर एनएचआरसी, भारत और विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। क्षमता निर्माण कार्यक्रम में मानवाधिकारों के विभिन्न पहलुओं पर कई सत्र होंगे, जिन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में प्रतिष्ठित विशेषज्ञ वक्ताओं द्वारा संबोधित किया जाएगा।

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