खबरीलाल टाइम्स डेस्क : नर्स और दाइयां भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का आधार और सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक हैं: केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव

भारत की गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा का श्रेय उसके नर्सिंग कार्यबल की शक्ति और प्रतिबद्धता को जाता है: वीके पॉल, सदस्य, नीति आयोग

भारत वैश्विक नर्सिंग कार्यबल में दुनिया के सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक के रूप में उभरा है: भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और जेएचपीईजीओ के सहयोग से भारत में नर्सिंग नीति प्राथमिकताओं और सर्वोत्तम प्रथाओं पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय परामर्श और अनुभव साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया। इसका उद्देश्‍य नीतिगत संवाद को मजबूत करना और नर्सिंग तथा मिडवाइफरी क्षेत्र में सुधारों को आगे बढ़ाना है।

कार्यशाला में देश भर के नीति निर्माताओं, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, नियामकों, नर्सिंग शिक्षकों, पेशेवर संघों और विकास भागीदारों सहित प्रमुख हितधारकों को एक मंच पर लाया गया। इस परामर्श का उद्देश्य वर्तमान में जारी पहलों की समीक्षा करना, उभरती चुनौतियों की पहचान करना और भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र की प्राथमिकताओं और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुरूप नर्सिंग प्रशासन, शिक्षा और कार्यबल प्रबंधन को मज़बूत करने के लिए नवीन मॉडलों को साझा करना था।

उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव श्रीमती पुण्य सलिला श्रीवास्तव ने कहा कि नर्सें और दाइयाँ भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का आधार और सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने बल देते हुए कहा कि आयुष्मान आरोग्य मंदिर और आशा कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर, वे सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

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उन्होंने कहा कि भारत के हालिया सुधार, जिनमें राष्ट्रीय नर्सिंग एवं मिडवाइफरी आयोग (एनएनएमसी) की स्थापना, योग्यता-आधारित पाठ्यक्रम को अपनाना और नियामक ढांचे को आधुनिक बनाने की पहल शामिल हैं, नर्सिंग पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने में प्रमुख उपलब्धि हैं।

उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला के दौरान प्रत्येक राज्य से उभर कर आने वाली सर्वोत्तम प्रथाओं को राष्ट्रीय नीति निर्माण के लिए मार्गदर्शक सुझावों के रूप में कार्य करना चाहिए तथा अन्य राज्यों को देश भर में नर्सिंग क्षेत्र में व्यापक अनुकरण और सुधार के लिए इन मॉडलों पर ध्यान देना चाहिए।

इस अवसर पर अपने सम्‍बोधन में नीति आयोग के स्वास्थ्य सदस्य, प्रोफेसर वी. के. पॉल ने इस महत्वपूर्ण परामर्श के आयोजन के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन की सराहना की। भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है, जिसका मुख्य कारण इसके नर्सिंग कार्यबल की क्षमता और समर्पण है। उन्होंने दोहराया कि नर्सिंग भारत की व्यापक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की रीढ़ है।

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नर्सों के प्रशिक्षण की गुणवत्ता पर चिंता व्यक्त करते हुए, डॉ. पॉल ने कहा कि यह अभी भी ध्यान देने का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है। उन्होंने नर्सिंग शिक्षा में सुधारों की आवश्यकता पर बल दिया और देखभाल एवं पेशेवर उत्कृष्टता के उच्च मानकों को सुनिश्चित करने के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण और कौशल संवर्धन पर अधिक ज़ोर देने का आह्वान किया।

इस अवसर पर अपने सम्‍बोधन में भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रतिनिधि डॉ. पेडेन ने नर्सिंग और मिडवाइफरी क्षेत्र में देश की उल्लेखनीय प्रगति की सराहना की। उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक नर्सिंग कार्यबल में दुनिया के सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक के रूप में उभरा है। डॉ. पेडेन ने यह भी कहा कि वर्ष 2030 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में नर्सों की कमी में अनुमानित कमी का श्रेय काफी हद तक भारत द्वारा की गई प्रगति और नीतिगत पहलों को दिया जा सकता है।

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प्रतिभागियों ने समान कार्यबल वितरण, शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता आश्वासन, नेतृत्व विकास और नर्सिंग पेशेवरों के लिए करियर उन्नति के अवसरों जैसी नीतिगत प्राथमिकताओं पर विचार-विमर्श किया। उन्होंने राष्ट्रीय नर्सिंग रणनीतियों को विश्व नर्सिंग की स्थिति 2025 रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुकूल करने और क्षमता निर्माण एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को आगे बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का लाभ उठाने के महत्व पर ज़ोर दिया।

तीन दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला में तकनीकी सत्र, पैनल चर्चाएं और राज्य स्तर पर प्रस्तुतियां होंगी, जिनमें नर्सिंग शिक्षा, कार्यबल नियोजन और डिजिटल शिक्षा में नवाचारों को प्रदर्शित किया जाएगा। इस विचार-विमर्श का उद्देश्य पूरे भारत में एक सुदृढ़, कुशल और सशक्त नर्सिंग कार्यबल सुनिश्चित करने के लिए राज्यों के बीच साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण और पारस्परिक शिक्षा को बढ़ावा देना है।

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