खबरीलाल टाइम्स डेस्क : भारत के उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति श्री जगदीप धनखड़ ने आज राज्यसभा इंटर्नशिप कार्यक्रम – चरण 7 के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए स्वदेशी शक्ति का विकास अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि “युद्ध से सबसे अच्छा बचाव तब होता है जब हम शक्ति की स्थिति में हों। शांति तब सुनिश्चित होती है जब आप युद्ध के लिए तैयार रहें।”

उन्होंने कहा कि शक्ति केवल तकनीकी क्षमताओं या हथियारों से नहीं, बल्कि जनता से भी आती है। राष्ट्र की मजबूती नागरिकों की जागरूकता और उनके कर्तव्यों के प्रति निष्ठा से भी जुड़ी होती है।

मौलिक कर्तव्यों पर बल देते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि “हम दिन-रात अपने मौलिक अधिकारों की बात करते हैं, परंतु मौलिक कर्तव्यों की ओर पूरी तरह उदासीन रहते हैं। संविधान में ये कर्तव्य प्रारंभ में शामिल नहीं थे, परंतु समय की मांग को देखते हुए इन्हें 42वें और 86वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया।” उन्होंने कहा कि नागरिकों को राष्ट्रीय कल्याण, लोक व्यवहार, पर्यावरण, अनुशासन और सार्वजनिक संवाद में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए।

आर्थिक राष्ट्रवाद का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, “स्वदेशी का विचार आर्थिक राष्ट्रवाद से जुड़ा हुआ है। ‘वोकल फॉर लोकल’ को अपनाकर हम अपने कारीगरों और उद्यमियों को प्रोत्साहित कर सकते हैं। विदेशी वस्तुएं खरीदने से जहां हमारा विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावित होता है, वहीं देश में रोजगार और उद्यमशीलता को भी नुकसान पहुँचता है।”

उन्होंने हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण देते हुए कहा कि इसने देश में राष्ट्रवाद की भावना को और प्रबल किया है। सभी राजनीतिक दलों ने मिलकर विदेशों में भारत की शांति और आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की नीति को प्रकट किया है।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि “अब समय आ गया है कि हम राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रहित के विषयों पर सहमति बनाएं। राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक प्रगति, पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदारी जैसे मुद्दों पर सभी राजनीतिक वर्गों को एकमत होना चाहिए।”

भारतीय संसद के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि यह केवल एक विधायी निकाय नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों की इच्छाओं का प्रतिनिधि मंच है। यह कानून निर्माण के साथ-साथ कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने का सर्वोच्च संवैधानिक मंच है।

संविधान की गरिमा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि यह केवल एक विधिक दस्तावेज नहीं, बल्कि भारत के सभ्यतागत मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। संविधान की मूल प्रति में चित्रित 22 ऐतिहासिक चित्र हमारे गौरवशाली अतीत को दर्शाते हैं।

कार्यक्रम में श्री धनखड़ ने युवाओं से आह्वान किया कि वे संविधान के अधिकारों और कर्तव्यों दोनों का समान रूप से पालन करें और राष्ट्र निर्माण में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं।

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